चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की।
कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या?
गाँव?
शहर?
देश?
मेरी माँ ने जने सब अछूत ही अछूत
तुम्हारी माँ ने सब बामन ही बामन।
कितने ताज्जुब की बात है
जबकि प्रजनन-क्रिया एक ही जैसी है।
वह दिन कब आएगा
बामनी नहीं जनेगी बामन
चमारी नहीं जनेगी चमार
भंगिन भी नहीं जनेगी भंगी।
तब नहीं चुनेंगे
जातीयहीनता के दंश।
नहीं मारा जाएगा तपस्वी शंबूक
नहीं कटेगा एकलव्य का अँगूठा
कर्ण होगा नायक
राम सत्तालोलुप हत्यारा।
क्या ऐसे दिन कभी आएँगे?
वे भूखे हैं
पर आदमी का मांस नहीं खाते
प्यासे हैं
पर लहू नहीं पीते
नंगे हैं
पर दूसरों को नंगा नहीं करते
उनके सिर पर
छत नहीं है
पर दूसरों के लिए
छत बनाते हैं।
तुम महान हो,
तुम्हारी जिह्वा से निकला
हर शब्द पवित्र है—
मान बैठा था मैं।
तुमने पढ़ रखी हैं
ढेरों पुस्तकें
आता है दुहराना शब्दों को
बदलना अर्थों को।
सहिष्णुता तुम्हारी पहचान है।
वर्ण-व्यवस्था को तुम कहते हो आदर्श
ख़ुश हो जाते हो
साम्यवाद की हार पर।
जब टूटता है रूस
तो तुम्हारा सीना 36 हो जाता है
क्योंकि मार्क्सवादियों ने
छिनाल बना दिया है
तुम्हारी संस्कृति को।
हाँ, सचमुच तुम सहिष्णु हो
जब दंगों में मारे जाते हैं
अब्दुल और क़ासिम
कल्लू और बिरजू
तब तुम सत्यनारायण की कथा सुनते हुए
भूल जाते हो अख़बार पढ़ना।
पूजते हो गांधी के हत्यारे को
तोड़ते हो इबादतगाह झुंड बनाकर।
कभी सोचा है
गंदे नाले के किनारे बसे
वर्ण-व्यवस्था के मारे लोग
इस तरह क्यों जीते हैं?
तुम पराए क्यों लगते हो उन्हें
कभी सोचा है?
यदि तुम्हें,
धकेलकर गाँव से बाहर कर दिया जाए
पानी तक न लेने दिया जाए कुएँ से
दुतकारा-फटकारा जाए
चिलचिलाती दुपहर में
कहा जाए तोड़ने को पत्थर
काम के बदले
दिया जाए खाने को जूठन
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
मरे जानवर को खींचकर
ले जाने के लिए कहा जाए
और,
कहा जाए ढोने को
पूरे परिवार का मैला
पहनने को दी जाए उतरन
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
पुस्तकों से दूर रखा जाए
जाने नहीं दिया जाए
विद्या मंदिर की चौखट तक
ढिबरी की मंद रोशनी में
कालिख पुती दीवारों पर
ईसा की तरह टाँग दिया जाए
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
रहने को दिया जाए
फूस का कच्चा घर
वक़्त-बेवक़्त फूँक कर जिसे
स्वाह कर दिया जाए
बरसात की रातों में
घुटने-घुटने पानी में
सोने को कहा जाए
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
नदी के तेज़ बहाव में
उल्टा बहना पड़े
दर्द का दरवाज़ा खोलकर
भूख से जूझना पड़े
भेजना पड़े नई-नवेली दुल्हन को
पहली रात ठाकुर की हवेली
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
अपने ही देश में नकार दिया जाए
मानकर बँधुआ
छीन लिए जाएँ अधिकार सभी
जला दी जाए समूची सभ्यता तुम्हारी
नोच-नोच कर
फेंक दिए जाएँ
गौरवमय इतिहास के पृष्ठ तुम्हारे
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
वोट डालने से रोका जाए
कर दिया जाए लहूलुहान
पीट-पीटकर लोकतंत्र के नाम पर
क़दम-क़दम पर
याद दिलाया जाए जाति का ओछापन
दुर्गंध भरा हो जीवन
हाथ में पड़ गए हों छाले
फिर भी कहा जाए
खोदो नदी-नाले
तब तुम क्या करोगे?
यदि तुम्हें,
सरेआम बेइज़्ज़त किया जाए
छीन ली जाए संपत्ति तुम्हारी
धर्म के नाम पर
कहा जाए बनने को देवदासी
तुम्हारी स्त्रियों को
कराई जाए उनसे वेश्यावृत्ति
तब तुम क्या करोगे?
साफ़-सुथरा रंग तुम्हारा
झुलसकर साँवला पड़ जाएगा
खो जाएगा आँखों का सलोनापन
तब तुम काग़ज़ पर
नहीं लिख पाओगे
सत्यम, शिवम्, सुंदरम्।
देवी-देवताओं के वंशज तुम
हो जाओगे लूले-लंगड़े और अपाहिज
जो जीना पड़ जाए युगों-युगों तक
मेरी तरह,
तब तुम क्या करोगे?